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Home » आइसार्क में पूर्वी आईजीपी के लिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और सतत् तीव्रीकरण पर क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने हेतु कार्यशाला का आयोजन
वाराणसी

आइसार्क में पूर्वी आईजीपी के लिए जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और सतत् तीव्रीकरण पर क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने हेतु कार्यशाला का आयोजन

adminBy adminFriday, 23 August 2024, 10:46 ISTNo Comments3 Mins Read
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वाराणसी। इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (इरी) साउथ एशिया रीजनल सेंटर (आइसार्क), वाराणसी ने गुरुवार को "परिवर्तनशील पर्यावरण में एग्रोनॉमी को प्राथमिकता देना (पैस)" नामक दो दिवसीय बहु-हितधारक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य पैस टूल का उपयोग करके पूर्वी आईजीपी क्षेत्र में छोटे किसानों द्वारा सामना की जा रही जलवायु चुनौतियों और उत्पादन बाधाओं का समाधान करने वाले सर्वोच्च प्रभावी हस्तक्षेपों की प्राथमिकता तय करना था। यह कार्यशाला सीरियल सिस्टम्स इनिशिएटिव फॉर साउथ एशिया (सीसा), एक्सीलेंस इन एग्रोनॉमी (EiA) के क्षेत्रीय कार्यक्रम, और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – केंद्रीय शुष्कभूमि कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-CRIDA), हैदराबाद के संयुक्त प्रयास से आयोजित की गई थी।
   ICAR-CRIDA के निदेशक डॉ. वी.के. सिंह ने अपने संबोधन में पूर्वी आईजीपी के महत्व पर जोर दिया, जो भारत के कुल खाद्यान्न उत्पादन में 50% का योगदान देता है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की धान-गेहूं प्रणाली को बाढ़, सूखा और हीट वेव जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उत्पादन में भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने पैस टूल के तीन मुख्य पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिनमें से दो पूरे हो चुके हैं: प्रणाली की उत्पादकता का मूल्यांकन और उत्पादन बाधाओं तथा जलवायु खतरों से होने वाले नुकसान का विश्लेषण और इस दो दिवसीय कार्यशाला में अनुकूलन/प्रतिक्रियाओं पर चर्चा की गयी है।”
    "पैस एक इंटरएक्टिव टूल है जिसे जलवायु खतरों को कम करने और अनुकूलन विकल्पों की पहचान करने की प्रक्रिया में मदद करने के लिए विकसित किया गया है," आइसार्क के निदेशक सुधांशु सिंह ने बताया। उन्होंने कहा कि यह टूल प्रमुख फसलों के क्षेत्र और उनके आर्थिक उत्पादन मूल्य के आधार पर उनकी प्रणाली का वर्गीकरण करता है और प्रत्येक फसल तथा मौसम के लिए प्रमुख जलवायु चुनौतियों और खतरों की पहचान और प्राथमिकता तय करता है। उन्होंने छोटे किसानों द्वारा सामना की जा रही महत्वपूर्ण चुनौतियों पर भी जोर दिया, साथ ही सूखे क्षेत्रों, वर्षा आधारित कृषि और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मिलने वाले अवसरों का उल्लेख किया। उन्होंने यह भी कहा कि सभी राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली साझेदारों की विशेषज्ञता का सही उपयोग इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। EiA का लक्ष्य 2030 तक प्राथमिकता वाले कृषि प्रणालियों में लाखों छोटे किसान परिवारों की उत्पादकता और प्रति इनपुट गुणवत्ता (एग्रोनॉमिक गेन) को बढ़ाना है। यह पहल महिलाओं और युवा किसानों पर विशेष ध्यान देती है और खाद्य और पोषण सुरक्षा, आय, संसाधन उपयोग, मिट्टी के स्वास्थ्य, जलवायु लचीलापन और जलवायु परिवर्तन शमन पर मापने योग्य प्रभाव डालने का प्रयास करती है।
   इरी के सस्टेनेबल इम्पैक्ट डिपार्टमेंट के डिप्टी हेड और EiA के क्षेत्रीय प्रमुख डॉ वीरेंद्र कुमार ने पूर्वी आईजीपी की कम उत्पादकता, सीमित मशीनीकरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौती पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इन समस्याओं को हल करने के लिए पैस जैसे स्केलेबल समाधान की आवश्यकता है, जो दोनों – न्यूनीकरण और अनुकूलन रणनीतियों को ध्यान में रखे। वर्ल्ड बैंक के सीनियर एग्रीकल्चर इकॉनॉमिस्ट, इफ्तिखार मुस्तफा ने एक डाटाबेस ढांचे और जोखिम प्रबंधन दृष्टिकोण का सुझाव दिया, जो धान को अन्य फसलों के साथ एकीकृत करता हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी तकनीक को प्रभावी बनाने के लिए उसे उपयोगकर्ता-समावेशी और उपयोगकर्ता-अनुकूल होना चाहिए, ताकि वह किसानों के लिए वास्तव में लाभकारी हो सके।
   कार्यशाला में अन्य प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कुलपति, डॉ. ए.के. सिंह; ICAR-CRIDA हैदराबाद के प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. बी.एम.के. राजू; बीएचयू के कृषि महाविद्यालय के डीन, डॉ. यू.पी. सिंह; ICAR-IARI के डॉ. एस.एस. राठौड़, और इरी, ICAR-CRIDA, बीएचयू, बीएयू, केवीके आदि के अन्य वैज्ञानिक और विशेषज्ञ शामिल थे।
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