महर्षि वाल्मीकि ने समाज को जीवन के आदर्श और नैतिक मूल्यों का मार्गदर्शन प्रदान किया-कुलपति प्रो• बिहारी लाल
वाराणसी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने महर्षि वाल्मीकि जयंती के पावन अवसर पर विश्वविद्यालय परिवार और समस्त समाज को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने इस अवसर पर भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि महर्षि वाल्मीकि न केवल संस्कृत साहित्य के महान आचार्य थे, बल्कि उन्होंने समाज को जीवन के आदर्श और नैतिक मूल्यों का मार्गदर्शन प्रदान किया। उनके द्वारा रचित रामायण विश्व साहित्य में अमर कृति है जो आज भी लाखों लोगों के जीवन में प्रेरणा का स्रोत है।
महर्षि वाल्मीकि के जीवन दर्शन को आत्मसात करें।
प्रो. शर्मा ने कहा महर्षि वाल्मीकि का जीवन यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों व्यक्ति अपने आत्मबल और दृढ़ संकल्प के माध्यम से महानता प्राप्त कर सकता है। एक समय के डाकू से महर्षि बनने तक की उनकी यात्रा यह प्रमाणित करती है कि ज्ञान और सत्य की ओर बढ़ने के लिए व्यक्ति के भीतर परिवर्तन की क्षमता अद्वितीय है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन इस बात का प्रतीक है कि हर व्यक्ति में आत्मान्वेषण और आत्मोन्नति की अपार संभावनाएँ होती हैं।
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि का स्थान
महर्षि वाल्मीकि का भारतीय संस्कृति और धर्म में अमूल्य योगदान रहा है। उन्होंने रामायण जैसी महाकाव्य रचना के माध्यम से मानवता को आदर्श नैतिकता और धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया। रामायण की कहानी न केवल भगवान राम के जीवन पर आधारित है बल्कि यह हमें सिखाती है कि सच्चाई धर्म और न्याय के पथ पर चलने से ही मनुष्य जीवन में सफलता और संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
वाल्मीकि जी की रचनाएं हमें जीवन के मार्गदर्शन देती।
प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने महर्षि वाल्मीकि की रचनाओं के साहित्यिक और नैतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वाल्मीकि जी ने जिस सरल और प्रभावी भाषा में रामायण की रचना की है वह न केवल उस समय के समाज को मार्गदर्शन देने के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि आज भी उनकी शिक्षाएं हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
समाज सुधारक और मानवतावादी दृष्टिकोण महर्षि वाल्मीकि ने केवल एक कवि या महाकाव्यकार के रूप में ही नहीं बल्कि एक समाज सुधारक और मानवतावादी के रूप में भी अपना योगदान दिया। उनकी रचनाओं में नारी के प्रति सम्मान समाज के उपेक्षित वर्गों के प्रति संवेदनशीलता और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के आदर्श स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं। प्रो. शर्मा ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाएं आज भी समाज में समानता और न्याय की भावना को प्रबल करने में सहायक हो सकती हैं।
प्रासंगिकता और प्रेरणा का स्रोत:
कुलपति महोदय ने अपने संदेश में यह भी कहा कि महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाएं और उनका जीवन आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन जीने की कला और समाज के लिए एक आदर्श संहिता है। यह हमें यह सिखाती है कि कैसे हम अपने जीवन में धर्म कर्तव्य और न्याय के सिद्धांतों का पालन करके एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
समारोह और आयोजन
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में महर्षि वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। इसमें महर्षि वाल्मीकि के जीवन और उनके योगदान पर व्याख्यान एवं चर्चा सत्र भी आयोजित किये जाने की योजना है। विद्यार्थियों और शिक्षकों द्वारा महर्षि वाल्मीकि के आदर्शों और उनके महान साहित्यिक योगदान पर अपने विचार साझा करने का अवसर मिलेगा।
उनके आदर्श हमारे जीवन को नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने कहा हम सभी को महर्षि वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए अपने जीवन में सत्य न्याय और कर्तव्य के सिद्धांतों को आत्मसात् करना चाहिए। उनके आदर्श हमारे जीवन को नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।