वाराणसी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य सिद्धांत हिंदी प्रेमियों के लिए शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक है। वे मूलतः साहित्य विवेचक थे और साहित्य को लोककल्याण का साधन मानते थे। लोक-मंगल आचार्य शुक्ल के चिंतन का केन्द्रीय तत्व है। उनके लोक-मंगल की अवधारणा को समझने की जरूरत है।
यह विचार आज आचार्य शुक्ल की140 वीं जयंती पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य शोध संस्थान, रवीन्द्रपुरी के सभागार में ‘ आज का समय और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ‘विषयक संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए।
अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्यकार दयानिधि मिश्र ने कहा कि आचार्य शुक्ल ने जो ‘हिंदी साहित्य का इतिहास ‘ रचा है, वह सर्वाधिक प्रामाणिक और प्रयोगसिद्ध ठहरता है। विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ सुरेन्द्र प्रताप ने आचार्य शुक्ल को आलोचक, निबंधकार,कोशकार, साहित्येतिहासकार, अनुवादक, कथाकार और कवि के रूप में रेखांकित किया। पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष, काशी विद्यापीठ डॉ सुरेन्द्र प्रताप ने कहा कि आचार्य शुक्ल ने हिंदी में व्यवस्थित साहित्य सिद्धांतों की नींव रखी। डॉ वशिष्ठ ‘अनूप ने कहा कि आचार्य काशी में रह कर भी मिर्जापुर के प्राकृतिक सौंदर्य को नहीं भूल पाये और हमेशा वहां के विकास के बारे में सोचते और लिखते रहे। वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार डॉ अत्रि भारद्वाज ने आचार्य शुक्ल को समादृत लेखक और आलोचक के रूप में रेखांकित किया। हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो श्रद्धानंद ने बताया कि शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य के अध्ययन,अध्यापन के लिए व्यवस्थित रूप से पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में दूरदर्शन और आकाशवाणी के निदेशक डॉ राजेश कुमार गौतम ने कहा कि शुक्ल जी की अद्वितीय कृति ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ साहित्य के क्षेत्र में मील का पत्थर है। हम आकाशवाणी और दूरदर्शन से समय समय पर शुक्ल जी के कार्यक्रम प्रसारित करते रहते हैं।
डॉ शशिकला पांडेय ने कहा कि आचार्य शुक्ल ने जीवनपर्यंत हिंदी साहित्य जगत को विकास की ओर अग्रसर किया,जिसके कारण हिंदी साहित्य पूरे विश्व में स्थापित है। डॉ सुमन जैन ने उत्तर उपनिवेशिक काल के संदर्भ में आचार्य शुक्ल की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।आगतों का स्वागत करते हुए संस्थान की अध्यक्ष डॉ मुक्ता ने कहा कि आचार्य शुक्ल ने विरुद्धों के सामंजस्य की सुंदर व्याख्या की है जो प्रकृति और व्यवहार में सर्वत्र दृश्यमान है ।धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के मंत्री प्रोफेसर मंजीत चतुर्वेदी ने किया।
इस अवसर पर गिरिश्वर मिश्र द्वारा संपादित पुस्तक ‘इक्कीसवीं सदी में आचार्य शुक्ल’ का लोकार्पण भी हुआ।अंत में आचार्य शुक्ल की कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय ‘ का वैभव शर्मा के निर्देशन में प्रभावी मंचन हुआ।नाट्य रूपांतरण प्रोफेसर मंजीत चतुर्वेदी का था। कार्यक्रम का संचालन डॉ संगीता श्रीवास्तव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के मंत्री मंजीत चतुर्वेदी ने किया।
इस अवसर पर डा किरण पाठक, डॉ भगवंती सिंह, एम पी सिंह, डॉ अशोक सिंह सुरेंद्र वाजपेयी,डॉ मंजरी पांडेय, प्रो रचना शर्मा ने भी विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर आलोक कुमार सिंह ,एखलाक भारती, सविता सौरभ, झरना मुखर्जी, करुणा सिंह, सुभाष चंद्र , नवलकिशोर गुप्ता, सुशील भीम , अरविंद भटनागर, सुनील कुमार, रंजना झा आदि की गरिमामय उपस्थिति रही।
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