वाराणसी: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक हृदयविदारक मामले की सुनवाई करते हुए शराब के सेवन और उसके दुष्परिणामों पर कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि “आदमी शराब पीने के बाद जानवर हो जाता है।” यह टिप्पणी एक कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा अपनी सात वर्षीय बेटी के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में मिली सजा को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए आई। इस मामले का एक दुखद पहलू यह भी है कि बच्ची की मां वाराणसी की रहने वाली हैं। शीर्ष अदालत ने दोषी डॉक्टर को किसी भी प्रकार की राहत देने से साफ इनकार कर दिया।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने डॉक्टर की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। अदालत ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को सही ठहराते हुए कहा कि दोषी डॉक्टर किसी भी सहानुभूति का पात्र नहीं है।
वाराणसी से हल्द्वानी तक: दर्दनाक घटनाक्रम
इस दुर्भाग्यपूर्ण मामले में बच्ची की मां ने अपने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता महिला वाराणसी में रहती हैं, जबकि उनके पूर्व पति, जो पेशे से कार्डियोलॉजिस्ट हैं, हल्द्वानी में एक नर्सिंग होम चलाते हैं। यह जघन्य घटना करीब सात साल पहले घटित हुई थी।
पीड़िता की मां के अनुसार, 23 मार्च 2018 को डॉक्टर अपनी सात वर्षीय बेटी को अपने साथ हल्द्वानी ले गया। 30 मार्च को उसने अपनी पत्नी को फोन कर बच्ची को वापस ले जाने के लिए कहा। इसके बाद, मासूम बच्ची ने अपनी मां को बताया कि उसके पिता ने हल्द्वानी की यात्रा के दौरान उसे गलत तरीके से छुआ था, जब उसकी उम्र महज सात वर्ष थी।
डॉक्टर के वकील की दलील और अदालत का करारा जवाब
सुप्रीम कोर्ट में दोषी डॉक्टर के वकील ने तर्क दिया कि बच्ची की गवाही सिखा-पढ़ाकर दर्ज कराई गई है। वकील ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित लाखों मामलों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि डॉक्टर की याचिका पर जल्द सुनवाई संभव नहीं है, इसलिए सजा रद्द की जानी चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह सजा रद्द करने का कोई वैध आधार नहीं है।
अदालत की तीखी टिप्पणियां: शराब और इंसानियत
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी डॉक्टर की याचिका खारिज करते हुए कड़ी टिप्पणियां कीं। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “जिस तरह की चीजें शख्स ने अपनी बच्ची के साथ की हैं, उसे किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती। बच्ची ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत की है। यह घिनौना आदमी है। इसको मिली किसी भी तरह की सजा को निलंबित नहीं किया जा सकता। अपनी बच्ची के साथ कोई यह नहीं कर सकता।”
अदालत ने यह भी तर्क दिया कि एक छोटी बच्ची अपने ही पिता के खिलाफ झूठा बयान क्यों देगी। जजों ने कहा कि बच्ची ने पूछताछ में बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात रखी है। इसी दौरान अदालत ने शराब के सेवन पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “आदमी शराब पीने के बाद जानवर हो जाता है। हमें यह नहीं कहना चाहिए, पर ऐसा ही है।” अदालत ने डॉक्टर को जमानत न देने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि डॉक्टर ने यौन उत्पीड़न शराब के नशे में किया था, जो एक गंभीर अपराध है और किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त रुख बाल यौन शोषण जैसे जघन्य अपराधों के प्रति अपनी कठोर नीति को दर्शाता है। वाराणसी से जुड़े इस दुखद मामले में अदालत की टिप्पणी शराब के सेवन के खतरनाक परिणामों और इंसानियत के पतन पर एक गंभीर सवाल उठाती है।

