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वाराणसी

अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय संस्था की उत्तर प्रदेश शाखा’ के द्वारा वर्चुअल माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विचार संगोष्ठी का आयोजन

adminBy adminFriday, 27 September 2024, 11:24 ISTNo Comments4 Mins Read
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Varanasi: अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय संस्था की उत्तर प्रदेश शाखा
के द्वारा वर्चुअल माध्यम से एक अंतरराष्ट्रीय विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया l विषय था ‘हिंदी , राष्ट्रभाषा होने में संभावनाएं और चुनौतियां ‘
कार्यक्रम का आरंभ प्रो रचना शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना से किया।
तत् पश्चात् संस्था अध्यक्ष डॉ इंदू झुनझुनवाला ने सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनन्दन किया । अपने वक्तव्य में कहा कि त्रिभाषा का सूत्र उत्कृष्ट है। सब को अपनी अपनी भाषा छोड़ कर समग्र रुप से हिन्दी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ,सैनिक वर्ल्ड इंग्लिश स्कूल के प्रधानाचार्य सुरेन्द्र कुमार पाठक ने कहा चुनौतियों में राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी से मुकाबला, तकनीकी भाषा के रूप में कम स्वीकार्यता संभावनाएं ,फिल्मों, सोशल मीडिया, टेलीविजन पर हिंदी का प्रसार विश्व स्तर पर पहुंच
कंप्यूटर, इंटरनेट पर स्वीकारिता इस बात का सबूत है कि बहुत शीघ्र ही हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा बनेगी।
विशिष्ट वक्ता के रूप में लंदन से जुड़ी ई पत्रिका लेखनी की संपादिका शैल अग्रवाल ने कहा की हिंदी भाषा की अनेकानेक बोलियों में वर्चस्व की लड़ाई है,सभी अपनी भाषा को लाना चाहते हैं। इस लिए एकता की बात नहीं कर रहे।
वरिष्ठ वक्ता के रूप में हमारे बीच लखनऊ से जुड़ी हैं डा स्नेह लता ने कहा आज भारत देश विश्व में आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है।सशक्त राष्ट्र की पहचान को ही सर्वसम्मति प्राप्त होती है।आज हिन्दी भी अपनी अस्मिता और वैज्ञानिकता के कारण लोकप्रिय होती जा रही है।हिन्दी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।
पटना से हमारे बीच उपस्थित डॉ किरन सहाय ने कहा हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है, लेकिन अभी तक इसकी मान्यता अप्राप्य है,इस सम्बन्ध में संविधान में राष्ट्र भाषा बनाने केलिए कुछ सदस्यों का‌ समर्थन भी‌ प्राप्त था तो असहमति भी। किन्तु यह अवश्य उद्घोषित करना होगा कि भारत में अनेक भाषाओं एवं बोलियां भी हैं। लेकिन राष्ट्र भाषा हिंदी का व्यापक क्षेत्र होने के कारण १४ सितम्बर १९४९ को इस महत्वपूर्ण विषय पर बहस हुआ जिसमें निर्णय यह हुआ कि भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी ही सार्थक रहेगी। हर व्यक्तियों को अपनी रचनाएं हिंदी में लिखे और अन्य को भी प्रेरित करे , तभी हिंदी को राष्ट्र भाषा बनने का सौभाग्य भी मिलेगा।
वाराणसी से डॉ नीलम सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था-
हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय -हृदय से बातचीत करता है और हिंदी हृदय की भाषा है।
हिंदी की व्यापकता इस कथन को प्रमाणित करती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी राजनीति का शिकार हुई है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भाषाई राजनीति का लंबा इतिहास रहा हैं। हिंदी भाषा को अपने ही घर में विरोध झेलना पड़ा है, इसका कारण भाषाई राजनीति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है l
प्रो रचना शर्मा ने अपनी रचना के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए —
अपनी भाषा हिन्दी का कुनबा
बहुत बड़ा है
जुड़ता है इससे निर्बाध ताना -बाना
हिन्दी के शब्द
बुनते हैं रिश्ते चाचा मामा मौसी और बूआ का
अंग्रेजी की तरह हिन्दी
चाचा और मामा को
अंकल में ही नहीं समेट देती है
न बूआ और मौसी को आंटी शब्द में लपेट कर
रिश्तों की पहचान को
मसल देती है l
कार्यक्रम में चर्चित युवा कवि और हिंदी प्रेमी, कुशीनगर केन्द्रीय विद्यालय संगठन में स्नातकोत्तर शिक्षक (हिन्दी) पद पर अपनी सेवाएं प्रदान करते हुए एवं साहित्य सृजन करने वाले
सुनील चौरसिया ‘सावन’ ने अपनी रचनाओं से कार्यक्रम की शोभा बढाई—
मन की गांठें खोले हिन्दी ,
जीवन में रस घोले हिन्दी ।
मैं भी बोलूं , तुम भी बोलो
मन से जन-जन बोलें हिन्दी।।
और कहा कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने की पूरी संभावना है। हिन्दी भावात्मक भाषा है।
तथा कुशल मंच संचालन डा संगीता श्रीवास्तव ने किया और कहा की हिंदी का विस्तार अर्श से फर्श तक है।
हिंदी तो सोलह कलाओं से युक्त है,सोलह श्रृंगार है और सोलह संस्कार है।
ये हमारी मानसिक गुलामी है कि हम हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिला पा रहें हैं। यह एक व्याधि की तरह है ,जो अंदर ही अंदर हमें खोखला कर रही है। हम हिंदी बोलने में हीनता महसूस करते हैं।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए नामचीन कवयित्री और कुशल रंगकर्मी तथा उत्तर प्रदेश शाखा की अध्यक्ष डॉ मंजरी पांडेय ने कहा कि अब हिन्दी को प्रचार प्रसार की आवश्यकता नहीं है। इसे राष्ट्रभाषा बनाने की मुहिम चलाई जानी चाहिए। देश के हर नागरिक को निज निज भाषा के संदर्भ को छोड़कर मिलबैठ कर चर्चा और हिन्दी के लिये एक आम सहमति बनानी होगी।
इस अवसर पर ज्योति तिवारी, साहित्यकार यशपाल सिंह ,चंदा प्रहलादका,बीएल प्रजापति तथा छात्र छात्राओं में अर्थव, आदर्श,श्रेया, रिदम, नीतिन, समृद्धि,पलक, आस्था, सृष्टि आदि आनलाइन उपस्थित रहे।

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