वाराणसी: इस अवसर पर कई स्थानों से संत महंत अवं भक्त हंस जनों का आगमन हुआ। सभी लोगो ने आज के दिन गुरु की पूजा आरती का दर्शन लाभ प्राप्त किया और अपनी श्रद्धा भक्ति को समर्पित की। गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु मे गु का अर्थ अन्धकार या अज्ञान और रू का अर्थ प्रकाश अन्धकार का निरोधक। अर्थात् अज्ञान को हटा कर प्रकाश ज्ञान की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता हैं। गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार होता है गुरू की कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुपूजन का विधान है। शिष्य अपने गुरु की प्रत्यक्ष या उनके चरण पादुका की चन्दन धूप दीप नैवेद्य द्वारा पूजा करते हैं। इस दिन अपने गुरु द्वारा प्रदत मंत्र का जप करने का विधान है |
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है वैसे ही गुरु चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान शान्ति भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है| पंथश्री हजूर साहेब ने अपने आशीर्वचन में गुरु के कहा की
गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं दुजा सब आकार।
आपा मैटैं हरि भजैं तब पावैं दीदार।।
गुरु और गोविंद दोनो एक ही हैं केवळ नाम का अंतर है। गुरु का बाह्य शारीरिक रूप चाहे जैसा हो किन्तु अंदर से गुरु और गोविंद मे कोई अंतर नही है। मन से अहंकार कि भावना का त्याग करके सरल और सहज होकर आत्म ध्यान करने से सद्गुरू का दर्शन प्राप्त होगा। जिससे प्राणी का कल्याण होगा। जब तक मन में मैलरूपी मैं और तू की भावना रहेगी तब तक दर्शन नहीं प्राप्त हो सकता।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
कबीर दास जी कहते है।
हे सांसारिक प्राणीयों। बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। तब टतक मनुष्य अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा राहता है जब तक कि गुरु की कृपा नहीं प्राप्त होती। मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। बिना गुरु के सत्य एवम् असत्य का ज्ञान नही होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? गुरु कि शरण मे जाओ। गुरु ही सच्ची रह दिखाएंगे।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।
संसारी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घडे के समान है। जिस तरह घड़े को सुंदर बनाने के लिए अंदर हाथ डालकर बाहर से थाप मारता है ठीक उसी प्रकार शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अंतर से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराईयो कों दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।
शाम को चौका आरती का आयोजन किया गया इस आरती पूजा में भक्तो ने नारियल पान फूल पुष्प पत्र द्रव्य गुरु समर्पित किया तथा भोजन भंडारा का भो आयोजन किया गया। इस तरह यह कार्य क्रम संपन्न हुआ।
पंथश्री हजूर अर्धनाम साहेब के पावन सान्निध्य में सद्गुरु कबीर प्राकट्य धाम लहरतारा में गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़ी धूम मनाया गया
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