स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’
की पत्रकार वार्ता
संवत् २०८० विक्रमी चैत्र कृष्ण चतुर्थी तदनुसार दिनाङ्क 29 मार्च 2024 ई.
स्थान – दिल्ली
भारी मन से कर रहे हैं भाई अथवा कसाई पर्टियों की सूची जारी
जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’
राजनीतिक दलों से गौ रक्षा की उम्मीद लगाए महीनों की प्रतीक्षा के बाद अन्ततः ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘१००८’ ने आज भारत के निर्वाचन आयोग में पञ्जीकृत २६०० से अधिक राजनीतिक दलों में से गौहत्या बन्दी कानून के लिए अपनी प्रतिबद्धता घोषित करने वाले दलों को भाई दल और इस विषय पर मौन रहने वाले बाकी दलों को अवधारणा के आधार पर कसाई दल निरूपित करते हुए सूची जारी कर रहे हैं ।
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने सूची जारी करते हुए कहा कि वह यह कार्य भारी मन से कर रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि भारत के अधिकांश दल गौहत्या बन्दी कानून के लिए आगे आएंगे पर अभी ऐसा होता दिखाई नहीं देने से उन्हें पीड़ा पहुँची है।
भाई पार्टी के रूप में चिन्हित राजनीतिक दलों की सूची संलग्न है
किसी को जिताना या हराना नहीं अपितु अपने प्यारे हिन्दुओं को गौहत्या के महापाप से बचाना है।
सूची जारी करने का उद्देश्य
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परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने स्पष्ट किया कि भाई और कसाई दल के रूप में सूची जारी करने का उद्देश्य किसी पार्टी विशेष को हराना या जिताना नहीं है अपितु यह सूची उन हिन्दुओं के सहयोग के लिए जारी की जा रही है जो सरकार में आकर गौहत्या करने वाली पार्टियों को वोट देकर गौहत्या का पाप अपने माथे पर नहीं लेना चाहते हैं। एक धर्माचार्य के रूप में शंकराचार्य का यह कर्तव्य है कि अपने अनुयायियों को पाप कर्म से दूर रखें और पुण्य कर्म में लगाए। शङ्कराचार्य जी ने कहा कि हमें सन्तोष है कि हम अपने अनुयायियों के समक्ष सत्य-धर्म का उपदेश करने का साहस कर पा रहे हैं ।
हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य के पूर्व पाप पुण्य का विचार जरूरी है
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने कहा कि हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य को करने के पहले यह विचार करने का नियम है कि हम जो कार्य करने जा रहे हैं वह पाप उत्पन्न करेगा या पुण्य। क्योंकि पाप से नरक, कष्ट और यातनाएं प्राप्त होती हैं और पुण्य कर्म से स्वर्ग, सुख और सुअवसर मिलते हैं। मतदान भी इस तरह का एक कर्म है जिससे पाप भी मिल सकता है और पुण्य भी। अगर हमारे वोट से जीता प्रत्याशी सरकार बनाता है और वह सरकार गौ हत्या करती है, उसको बढ़ावा देती है या फिर मांस बेचती है तो मतदाता को भी गौहत्या का महापाप लगेगा और अगर ऐसे प्रत्याशी को वोट दिया गया जो गौहत्या बन्दी के लिए गौमाता के सम्मान के लिए आवाज उठाता है तो मतदान से पुण्य प्राप्त होगा।
भाई दल या भाई प्रत्याशी को वोट देने से मिलेगा हजार गायों की रक्षा का पुण्य
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने आगे कहा कि गौरक्षा के प्रति अपनी सशपथ प्रतिबद्धता घोषित कर चुके दल के अथवा ऐसा कर चुके स्वतन्त्र प्रत्याशी को मतदान करने वालों को सहस्र गायों की रक्षा का पुण्य मिलेगा जबकि इस विषय पर मौन रहकर गौहत्या को बढ़ावा देने वालों के अथवा ऐसा ही करने वाले स्वतन्त्र प्रत्याशी को वोट देने वाले मतदाता को धर्मशास्त्र की दृष्टि से गौहत्या का पाप मिलेगा अतः मतदान के पूर्व कोई भी हिन्दू इसका विचार अवश्य करें।
हमारी यह मुहिम सबके कल्याणार्थ
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने आगे बताया कि उनकी यह मुहिम किसी के भी विरुद्ध नहीं, अपितु सबके कल्याणार्थ है। उन्होंने कहा कि पाप-पुण्य का विचार कर पात्र प्रत्याशी को किए गए मतदान से जहाँ हिन्दू पापमुक्त होगा और पुण्ययुक्त होगा वहीं देश के अन्य निवासियों को भी हिन्दुओं की गहरी गौभक्ति की भावना से परिचित होने का अवसर मिलेगा जिससे सामाजिक समरसता बढ़ेगी और समुदायों की पारस्परिक कटुता दूर होगी।
नेताओं से परलोक की भी चिन्ता करने का अनुरोध
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने कहा कि हम सब का कल्याण चाहते हैं इसीलिए हमें उन पार्टियों के नेताओं की भी चिन्ता है जो इस विषय पर अभी मौन दिखाई दे रहे हैं सबके साथ-साथ हम उनके परलोक की भी चिंता करने का अनुरोध कर रहे हैं। हिन्दू धर्मदृष्टि के अनुसार जीवात्मा को यमराज के सम्मुख लौकिक पद-प्रतिष्ठा के अनुसार नहीं, अपितु किए गए कर्मों के अनुसार ही आंका जाता है। उसी अनुसार स्वर्ग-नरक आदि प्रदान किए जाते हैं। यह विचारणीय है कि कुछ वर्षों के लौकिक पद कहीं लम्बे समय का नरक न दिला दे।
हिरण्यकशिपु का प्रह्लाद भी होगा स्वीकार
कुछ उन पार्टियों के प्रत्याशियों ने भी हम लोगों से सम्पर्क किया है जो गौहत्या के मुद्दे पर मौन हैं, उनका कहना है कि हम अपनी पार्टी से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं इसलिए तत्काल पार्टी छोड़ पाना या नई भाई पार्टी में हमारा आना सम्भव नहीं हो रहा है परन्तु गौमाता के प्रति हम अपनी व्यक्तिगत आस्था को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते हैं और संसद में इस विषय में मुखर होने का वचन देते हैं। ऐसे में हमें कसाई न समझ कर भाई के रूप में सूचीबद्ध किया जाए। ऐसे प्रत्याशियों की शपथपूर्वक उद्घोषणा के सार्वजनिक होने पर वैसे ही सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाए जाएगा जैसे हिरण्यकशिपु और उसके अन्य बेटे भगवान् श्रीहरि के विरुद्ध थे पर प्रह्लाद सत्य-धर्म के पक्ष में खड़ा था जिसे समाज ने स्वीकार कर लिया था।