बनारस में डिजिटल बैंकिंग फ्रॉड के सबसे ज्यादा मामले फिशिंग से जुड़े हैं। यानी कि ई-मेल और मैसेज भेजकर लोगों को झांसा दिया गया है। विशिंग यानी कि फर्जी कॉल के 24 फीसदी केस, यूपीआई धोखाधड़ी के 18 फीसदी, मैलवेयर और स्पाईवेयर के आठ फीसदी केस मिले हैं।
इसका खुलासा बीएचयू में हुए एक ग्राउंड सर्वे से हुआ। 300 लोगों और 15 बैंक मैनेजरों से मिले डेटा के मुताबिक, 36 फीसदी लोगों के साथ ई-मेल और एसएमएस से ही ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड कर लिया गया। जिले के 67 फीसदी लोग कभी न कभी सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर इसके शिकार हुए हैं।
बीएचयू के वाणिज्य संकाय के वित्तीय विशेषज्ञ डाॅ. वैभव कुमार और उनकी टीम ने काशी के कैंटोनमेंट, सिगरा, रोहनिया, बच्छाव आदि क्षेत्रों में सर्वे किया। 10 मामलों की केस स्टडी भी की गई। साथ ही आरबीआई रिपोर्ट और एनसीआरबी अपराध डेटा को आधार बनाकर पूरी रिपोर्ट तैयार की गई। इस सर्वे में 60 फीसदी शहरी और 40 फीसदी ग्रामीण लोग शामिल थे।
जिस तरह से डिजिटल बैंकिंग फ्रॉड के मामले बढ़ रहे, उस गति से जागरूकता नहीं है। इसकी तस्दीक इस सर्वे से ही होती है। 62 प्रतिशत लोग तो फर्जी और वास्तविक कॉल या एसएमएस में अंतर ही नहीं कर सके। 78 प्रतिशत ऐसे हैं, जो बैंकिंग लेनदेन करने वाले सिस्टम के नियमित पासवर्ड नहीं बदलते या दो-चरणीय प्रमाणीकरण (टू स्टेप वेरिफिकेशन) नहीं चालू रखते। केवल 21 फीसदी लोगों ने ही कभी किसी डिजिटल सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम में भाग लिया था।
11 बैंक को मिलीं शिकायतें
15 में से 11 बैंकों को साइबर धोखाधड़ी की ग्राहक शिकायतें मिलीं। केवल 6 बैंकों ने स्टाफ के लिए नियमित साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण दिया। ज्यादातर सार्वजनिक बैंक शाखाओं में डेडिकेटेड साइबर फ्रॉड यूनिट ही नहीं थी।
24.6 फीसदी लोग हुए सीधे शिकार
सर्वे के अनुसार, 24.6 फीसदी लोग (300 में से 74 लोग) फॉड के सीधे शिकार हैं। वहीं 42.6 फीसदी (300 में से 128) लोग अप्रत्यक्ष तौर पर फंसे थे। इस सर्वे में 18 से 30 साल की उम्र वाले 32 फीसदी, 31 से 50 साल के 45 फीसदी और 51 साल से ज्यादा के 23 फीसदी लोग को शामिल किया गया था। स्नातक या उससे ऊपर की शिक्षा वाले 58 फीसदी, हाई स्कूल के 29 फीसदी और हाई स्कूल से नीचे के 13 प्रतिशत लोग शामिल थे।