वाराणसी के पावन धरा पर आयोजित महाकवि जयशंकर प्रसाद साहित्य-संस्कृति महोत्सव अपने अंतिम दिन एक भव्य और प्रभावशाली समापन के साथ संपन्न हुआ। यह महोत्सव साहित्य, कला, संगीत, और रंगमंच का अद्भुत संगम रहा, जिसमें महाकवि जयशंकर प्रसाद की कृतियों और उनके साहित्यिक योगदान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया। चार दिन तक चले इस महोत्सव ने साहित्यप्रेमियों, कलाकारों और विद्वानों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान किया।
महोत्सव के अंतिम दिन, चित्रकला शिविर, प्रसाद संगीतमय संध्या, और नाट्योत्सव के माध्यम से जयशंकर प्रसाद के साहित्य और कला को भव्य रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही, राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिसंवाद में प्रसाद जी के साहित्यिक योगदान पर विद्वानों द्वारा गहन चर्चा की गई।
चित्रकला शिविर: सजीव चित्रों में प्रसाद का साहित्य
महोत्सव के अंतिम दिन आयोजित चित्रकला शिविर में प्रसाद जी की काव्यात्मकता को रंगों और रेखाओं के माध्यम से चित्रित किया गया। शिविर में वरिष्ठ चित्रकारों ने प्रसाद के काव्य संसार को सजीव रूप दिया, जिससे उनकी रचनाओं की गहराई और भावनात्मकता को दर्शकों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया। शिविर में भाग लेने वाले प्रमुख कलाकारों में सुनील कुमार विश्वकर्मा, अजय उपासनी, आशा देवी, बलदाऊ वर्मा, नीतू वर्मा, और राजकुमार सिंह शामिल थे।
इन चित्रकारों ने प्रसाद के साहित्य में समाहित दार्शनिकता, मानवतावाद, और सांस्कृतिक तत्वों को अपने-अपने चित्रों के माध्यम से उजागर किया। विशेष रूप से, ‘कामायनी’ के चित्रण ने दर्शकों को अतीत के भव्यता और वर्तमान की जटिलता के बीच संतुलन बनाने का संदेश दिया।
समापन समारोह में इन वरिष्ठ कलाकारों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। उन्हें स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम, और प्रमाणपत्र प्रदान कर उनके योगदान की सराहना की गई। यह सम्मान समारोह प्रसाद जी के साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने के महोत्सव के उद्देश्य को पूर्ण करता है।
प्रसाद संगीतमय संध्या: काव्य और संगीत का अद्भुत संगम
महोत्सव के अंतिम दिन का एक और प्रमुख आकर्षण था प्रसाद संगीतमय संध्या, जिसमें प्रसाद जी के काव्यों और गीतों को संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इस संगीतमय संध्या में संगीत के धुरंधरों ने प्रसाद के साहित्यिक काव्य में छिपी भावनाओं को सुरों में ढालकर प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. राजेश गौतम, निदेशक, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा बांसुरी की मधुर धुन पर प्रसाद जी के काव्यों और गीतों की प्रस्तुति से हुई। बांसुरी की धुनों ने प्रसाद के गीतों की कोमलता और गहराई को और भी आकर्षक बना दिया। इसके बाद, श्रीमती सुचरिता गुप्ता ने प्रसाद के प्रसिद्ध गीतों और ‘कामायनी’ के छंदों को अपनी सुरीली आवाज़ में प्रस्तुत किया। उनकी गायकी ने श्रोताओं को प्रसाद के काव्य की आत्मा का अनुभव कराया, और ‘कामायनी’ के छंदों की भावनात्मकता श्रोताओं के दिलों में गूंज उठी।
संध्या का समापन प्रसिद्ध सितारवादक पंडित देवव्रत मिश्रा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले सितारवादन से हुआ। पंडित मिश्रा की सितार की ध्वनियों ने प्रसाद के काव्य में छिपी भावना, करुणा और संवेदना को संगीत के माध्यम से जीवंत कर दिया। यह संगीत संध्या श्रोताओं के लिए एक अनमोल सांगीतिक अनुभव सिद्ध हुई, जिसमें साहित्य और संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिला।
राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिसंवाद: साहित्यिक धरोहर पर विचार-विमर्श
महोत्सव के समापन दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिसंवाद ने महाकवि प्रसाद के साहित्यिक योगदान को समकालीन दृष्टिकोण से समझने और विश्लेषण करने का एक मंच प्रदान किया। संगोष्ठी में देश के कई प्रसिद्ध विद्वानों और साहित्यकारों ने भाग लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. आनंद त्यागी, कुलपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने अपने उद्घाटन भाषण में महाकवि प्रसाद के साहित्य को भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर बताया। उन्होंने कहा, “प्रसाद का साहित्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक और दार्शनिक धारा को भी मजबूती से प्रतिबिंबित करता है। उनकी रचनाएँ आज भी समकालीन संदर्भों में प्रासंगिक हैं।”
संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. बिहारी लाल शर्मा, कुलपति, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने की। उन्होंने प्रसाद के साहित्य में छिपी भारतीय संस्कृति और दर्शन की गहराईयों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि डॉ. सुशील कुमार पांडे, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, संत तुलसीदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कादीपुर, सुल्तानपुर ने प्रसाद के संस्कृत साहित्य के योगदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्रसाद की रचनाएँ हमें हमारे अतीत से जोड़ती हैं और हमारे सांस्कृतिक गौरव को पुनर्जीवित करती हैं।
स्वागत वक्तव्य प्रो. हिरककांत चक्रवर्ती, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा दिया गया, जिन्होंने महाकवि प्रसाद के साहित्यिक योगदान की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रतिवेदन डॉ. विशाखा शुक्ला ने प्रस्तुत किया, जिसमें महोत्सव की प्रमुख उपलब्धियों और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला गया। अंत में, धन्यवाद ज्ञापन महाकवि जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री डा. कविता प्रसाद द्वारा किया गया, जिसमें उन्होंने सभी आगंतुकों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
समापन समारोह का प्रभाव
महाकवि जयशंकर प्रसाद साहित्य-संस्कृति महोत्सव के समापन समारोह ने भारतीय साहित्य और संस्कृति की समृद्धि और विविधता को रेखांकित किया। यह महोत्सव न केवल प्रसाद जी की रचनाओं का स्मरणोत्सव था, बल्कि यह साहित्य, कला, संगीत और नाट्य के विभिन्न रूपों के माध्यम से नई पीढ़ी को उनके साहित्यिक योगदान से परिचित कराने का एक सशक्त माध्यम भी सिद्ध हुआ।
महोत्सव ने यह संदेश दिया कि प्रसाद का साहित्य भारतीय समाज की आत्मा को समझने और उसे अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, और यह हमें हमारे सांस्कृतिक धरोहर को समझने और उसे संरक्षित करने की दिशा में प्रेरित करता है।
इस महोत्सव का समापन सभी अतिथियों, कलाकारों और प्रतिभागियों को सम्मानित करने के साथ हुआ, जिसने इस आयोजन को और भी विशेष बना दिया। महाकवि जयशंकर प्रसाद की कृतियों की अमरता और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को आने वाले समय में भी संजोने और संप्रेषित करने का संकल्प इस महोत्सव के समापन के साथ एक बार फिर गूंज उठा।