विश्वविद्यालय का 42 वाँ दीक्षान्त समारोह सम्पन्न
संस्कृत भाषा देववाणी है तो, देशवाणी भी है- महामहिम कुलाधिपति एवं श्री राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल
संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण सम्भव नही है- मुख्य अतिथि
संस्कृत वह भाषा है जो संस्कृति को जिन्दा रखती- शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय.
भारतीय ज्ञान परंपरा का संरक्षण इस संस्था के द्वारा किया जा रहा– शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती रजनी तिवारी.
भारतीय संस्कृति, संस्कृत एवं संस्कार को वैश्विक स्तर स्थापित करने का प्रयास– कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा.
भारत के प्रतिष्ठा के दो स्तम्भ है प्रथम संस्कृत व द्वितीय संस्कृति। संस्कृत भाषा देववाणी है तो, देशवाणी भी है। हर राष्ट्रवादी को संस्कृत पढ़ना चाहिये। उक्त विचार आज पूर्वाह्न 10.00 बजे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन में आयोजित 42वें दीक्षान्त समारोह की अध्यक्षता करते हुये महामहिम कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने व्यक्त किया।
आदर्श जीवन शैली संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में निहित–
उन्होंने संस्कृत एवं संस्कृति के महत्व पर विस्तार से चर्चा करते हुये कहा कि आदर्श जीवन शैली संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है जिसका हिन्दी अनुवाद कर आम जनमानस तक पहुँचाया जाये। जिससे ऋषिमुनियों के प्राचीन ज्ञान से वे भी लाभान्वित हो सकें।
पांडुलिपियों के अनमोल ज्ञान राशि पर प्रसन्नता व्यक्त की–
महामहिम कुलाधिपति ने सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों के बारे बताया कि यह हजार या उससे पूर्व की पांडुलिपियों को संरक्षित किया गया है।जिसमें अनमोल ज्ञान राशि निहित हैं, उसके संरक्षण का कार्य भी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के द्वारा बहुत सुन्दर प्रयास के साथ किया जा रहा है, जिसको गति देने के लिए कंप्यूटर क्रय करने का भी निर्देश दिया गया है।पांडुलिपियों का प्रकाशन कराकर व्यापक प्रचार प्रसार भी किया जाना चाहिए।
कुलाधिपति महोदया ने बच्च्चों को भारत का भविष्य बताते हुये कहा कि आठ साल तक के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहिये जिससे उनका भविष्य उज्ज्वल हो सके।उनकी स्मृतियाँ उस समय तीव्र होती हैं।वहीं भावी पीढ़ी के भविष्य हैं।
संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिये संस्कृत की छोटी किताब प्रकाशित हो–
उन्होने विश्वविद्यालय के आचार्यों से आग्रह करते हुये कहा कि संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये संस्कृत के शब्दों की छोटी किताब प्रकाशित की जाय जिससे संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार और विकास तीब्र गति से हो सके।
बतौर मुख्य अतिथि–
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम एवं राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद के अध्यक्ष प्रो० अनिल डी० सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं अपितु भारत के एक गौरवपूर्ण इतिहास को समेटने वाली अमूल्य नीधि है जो समस्त भारतीयों के लिये उर्जा का स्रोत है। संस्कृत के ज्ञान के बिना भारत को जानना पूर्ण सम्भव नही है। उन्होंने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिकता पर चर्चा करते हुये कहा कि इस विश्वविद्यालय में प्रारम्भ काल से ही देश विदेश के छात्र अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये आते रहे है आज भी दर्जनों विदेशी छात्र शोध कार्य में संलग्न है। भारत वर्ष में संस्कृत विधाओं के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार हेतु स्थापित यह प्राचीनतम शिक्षा का केन्द्र जहाँ से प्रचारित धर्म संस्कृति परम्परा से सम्बद्ध संदेश सूर्य रश्मि की भाँति भारत सहित पूरे विश्व को अलौकिक कर रहा है।
बतौर विशिष्ट अतिथि–
समारोह के विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षामंत्री योगेन्द्र उपाध्याय ने मेडल प्राप्त छात्र-छात्राओं को बधाई देते हुये कहा कि मेडल प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को समाज का माडल बनना होगा तभी सही रूप में उनके द्वारा अर्जित ज्ञान का उपयोग हो सकेंगा। उन्होंने संस्कृत भाषा के महत्व पर चर्चा करते हुये कहा कि संस्कृत वह भाषा है जो संस्कृति को जिन्दा रखती है एवं समस्त राष्ट्र को एकसूत्र में पीरो कर रखती है। हिन्दी और संस्कृत भाषा को समृद्ध भाषा बताते हुये उन्होंने छात्रों का उत्साहबर्धन करते हुये कहा कि शिक्षा वही होनी चाहिये जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बने।
बतौर सारस्वत अतिथि
समारोह की सारस्वत अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी ने काशी नगरी के महिमा का बखान करते हुये कहा कि काशी पाप विनाशी, विद्या प्रकाशी, चीरविलासी, काशी सबकी तारणीयभूमि हैं। यहाँ जो कोई भी आया यही का हो गया। उन्होंने विश्वविद्यालय के महत्व पर चर्चा करते हुये कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा से सम्बद्ध अनेक कार्य चल रहे है। कलाओं का सांस्कृतिक परम्पराओं का पूर्ण रूप से सम्वर्धन, संरक्षण गतिमान है। विभिन्न प्रकार के भारतीय पारम्परिक वस्त्रों मे क्रीड़ा (गिली डंडा, कबड्डी, खो खो)का संस्कृत कमेन्ट्री का आयोजन हो रहा है। दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संरक्षण, सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य गतिमान है।
कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा के द्वारा स्वागत भाषण–
कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा के द्वारा मंच पर आसीन अतिथियों का एकल पुष्प,अंगअस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन करते हुए अपने स्वागत भाषण में कहा कि यह संस्थान भारतीय ज्ञान-परम्परा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।जैसे कि चतुर्वेद स्वाहाकार विश्वकल्याण यज्ञ, दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संरक्षण, और सांस्कृतिक परम्पराओं का संरक्षण किया जा रहा है।सदैव यह विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार को वैश्विक पटल पर स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
विशिष्ट अतिथि गृह का शिलान्यास–
इस अवसर पर कुलाधिपति द्वारा विशिष्ट अतिथि गृह का शिलान्यास किया गया है, इस अतिथि गृह के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा अनुदान प्राप्त है।
डिजी लॉकर का प्रदर्शन-
डिजी लॉकर के माध्यम से कुलाधिपति महोदया के समक्ष उपाधियों का प्रदर्शन किया गया। डिजी लॉकर में सभी 13733 (मध्यमा से लेकर आचार्य, विद्यावारिधि) उपाधियों को ऑनलाइन अपलोड किया गया है, अब घर बैठे अपने समस्त अंक पत्र एवं प्रमाण पत्र ऑनलाइन माध्यमों से प्राप्त कर सकते हैं।
मेधावियों को पदक प्रदान- महामहिम कुलाधिपति के द्वारा 31 मेधावियों को विभिन्न प्रकार 56 मेडल (पदक) देकर सम्मानित किया गया।
महामहिम कुलाधिपति के हाथों से पदक प्राप्त कर मेधावियों में उत्साह– महामहिम कुलाधिपति के हाथों से पदक प्राप्त कर
मेधावियों(छात्र- छात्राओं) में अतिउत्साहित होकर हर्षित हुये।
गोद लिए गए पांच गाँव के विद्यालयों के विजेताओं एवं प्रधानअध्यापकों को भी सम्मानित एवं पुरस्कृत– महामहिम कुलाधिपति के द्वारा विश्वविद्यालय के द्वारा गोद लिए गए पांच गांवों के विद्यालयों में विभिन्न तरह के प्रतियोगिताओं क्रमशः निबन्ध, चित्र कला, कहानी लेखन एवं कथा वाचन में विजेताओं को क्रमशः
जिसमें मोनू राजभर,समीर, निष्ठा सेठ, नीरज गौतम, श्रेया शुक्ला, तीर्थ गौतम, श्रेयांस,आकांक्षा एवं अराधना आदि को पुरस्कृत किया गया।इसके साथ ही पांच गांवों के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य को भी कुलाधिपति द्वारा सारस्वत उपहार एवं स्मृति चिन्ह भी दिया गया।
आंगनबाड़ी केंद्रों को किट वितरित–
विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर महामहिम कुलाधिपति महोदया के द्वारा चंदौली जनपद के जिलाधिकारी एवं राजभवन के सहयोग से आँगनवाणी कार्यकत्रियो
को साड़ी, किट्स आदि का वितरण भी किया गया।महामहिम द्वारा किट में खिलौने, स्कूल बैग, तौलिया, नेल कटर आदि वितरित किया गया।
कुलपति ने किया महामहिम कुलाधिपति एवं अन्य अतिथियों का एकल पुष्प एवं अंगवस्त्र के साथ स्वागत और अभिनंदन–
कुलाधिपति एवं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का दौरान कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने एकलपुष्प,अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह देकर स्वागत और अभिनंदन किया।इनके साथ साथ क्रमशः मुख्य अतिथि प्रो
42 वें दीक्षान्त समारोह में 13733 उपाधियाँ एवं 31 मेधावी को 56 पदक–
विश्वविद्यालय के 42वें दीक्षान्त समारोह में कुल 31 मेधावियों को 56 पदक मा० कुलाधिपति महोदया के द्वारा प्रदान किया गया। कुलसचिव राकेश कुमार के द्वारा उपाधिधारक छात्र छात्रओं का उपस्थापन किया गया। दीक्षान्त समारोह में 13733 उपाधियाँ प्रदान की गयी। कार्यकम का प्रारम्भ पौराणिक एवं वैदिक मंगलाचरण से किया गया।
दीक्षान्त के प्रारम्भ में शिष्टयात्रा–
दीक्षान्त समारोह के प्रारम्भ में शोभायात्रा/शिष्ट यात्रा का दीक्षान्त स्थल पर किया परम्परानुसार हुआ।
राष्ट्रगान, वैदिक एवं पौराणिक मंगलाचरण-
राष्ट्रगान,वैदिक एवं पौराणिक मंगलाचरण तथा कुलगीत प्रस्तुत किया गया।
महामहिम ने दीक्षान्त समारोह प्रारम्भ की अनुमति दी–
कुलपति के अनुरोध पर महामहिम द्वारा दीक्षान्त समारोह के प्रारम्भ की अनुमति दी गई।
अनुशासन पाठ–
कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय के लिए अनुशासन का पाठ पढाया गया।
उपस्थापन-
विभागाध्यक्षों द्वारा पीएचडी उपाधि प्राप्त करने वाले स्नातकों का उपस्थापन किया गया।
धन्यवाद ज्ञापन–
धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० बिहारी लाल शर्मा ने सभी सम्मानित उपस्थित जनों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।
संचालन–
संचालन डॉ० मधुसूदन मिश्र ने किया।
उपस्थित ज़न–
इस अवसर आयुष राज्यमंत्री दया शंकर मिश्र “दयालू”,मेयर अशोक कुमार तिवारी, विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी, पूर्व कुलपति प्रो पृथ्वीश नाग,विधायक रमेश जायसवाल,जिलाधिकारी चंदौली निखिल टीफ़ू ,मुख्य विकास अधिकारी संतोष कुमार श्रीवास्तव,प्रो० प्रेमनारायण सिंह,प्रो रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो हरिशंकर पाण्डेय, प्रो जितेन्द्र कुमार, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो दिनेश कुमार गर्ग, प्रो अमित कुमार शुक्ल, प्रो• विजय कुमार पाण्डेय,प्रो० फूलचन्द्र जैन प्रेमी, प्रो० दुर्गानन्दन प्रसाद तिवारी, विद्या एवं कार्य परिषद् के सम्मानित सदस्य सहित विश्वविद्यालय के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित छात्र एवं छात्रायें उपस्थित थे।

