वाराणसी। कपिलधारा स्थित संत श्री रामाधीन दास गुरुकुल का रजत जयंती समारोह धूमधाम से मनाया गया । संस्थापक डॉ मनोज कुमार ठाकुर ने मुख्य अतिथितियों त्रिलोक नाथ मिश्र, डॉ रविशंकर पांडेय, डॉ सुनील सिंह एवं विनोद शंकर उपाध्याय का अंगवस्त्र एवं मिथिला पाग भेंट कर अभिवादन किया ।
गुरुकुल के छात्रों द्वारा मंगल गीत के गान के साथ मुख्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के बाद संस्था के निदेशक द्वारा अतिथियों का स्वागत हुआ । उन्होंने बताया की काशी शब्द का अर्थ है, प्रकाश देने वाली नगरी। जिस स्थान से ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलता है, उसे काशी कहते हैं।
काशी में स्थित ऐसे ही ज्ञान के एक प्रकाश पुंज हुए अस्सी क्षेत्र में राघव मंदिर नामक “श्री रामानंदी संप्रदाय के एक अति विशिष्ट मठ के पीठाधीश्वर, परम तपश्वी सिद्ध महात्मा “श्री श्री १०८ संत श्री रामाधीनदास जी महाराज” ।
उनके प्रिय शिष्य श्री मनोज कुमार ठाकुर जी के शब्दों में, महाराज जी भाव का सागर थे । साधु महात्माओं, संन्यासियों, वैदिक क्षात्रों , गरीब जनों यहाँ तक ही मूक पशु पक्षियों के प्रति भी उनकी भावना, उनकी करुणता, उनके प्रेम की सामान्य मनुष्य परिकल्पना भी नहीं कर सकते ।
ऐसे दिव्य महापुरुष का मत था की देश व समाज के उत्थान के लिए संस्कृत की अगाध ज्ञान राशि को जन साधारण तक पहुंचाना न केवल आवश्यक है अपितु हमारा धर्म भी है तथा यह दैविक कार्य बिना संस्कृत भाषा के अंगीकार के संभव नहीं है ।
इसी उत्कृष्ट भावना से प्रेरित महाराज श्री ने अपने प्रिय एवं सुयोग्य शिष्य “डा. मनोज कुमार ठाकुर” के समक्ष अपनी अभिलाषा व्यक्त की ।
राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम ,” अर्थात, “जब तक मैं अपने पूज्य गुरु द्वारा मुझे सौंपा गया कर्तव्य पूरा नहीं कर लेता, मैं कैसे आराम कर सकता हूं?”
इस भावना के साथ डॉ ठाकुर द्वारा आज के ही दिन सन् 2000 में अपने परम पूज्य गुरुदेव की स्मृति में माँ भागीरथी एवं वरुणा के पवित्र संगम तथा कपिल मुनि की पावन तपस्थली कपिलधारा में “संत श्री रामाधीनदास गुरुकुल” की स्थापना हुई ।
25 वर्ष पूर्व अपने द्वारा बीजारोपित इस संस्थान को डॉ ठाकुर ने अपने स्वेद, अपने रक्त, अपनी क्षुधा, अपनी लगन से सिंचित कर एक ऐसा सूर्य बना दिया है जिसने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से अनेक छात्रों को अंधकार रूपी अज्ञानता से दूर कर ज्ञान का प्रकाश पुंज बनाया है जो जीवन भर समाज में उसकी रौशनी फैलाते रहेंगे ।
समाज में सदोगुण के उदभव, भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए सत्य सनातन के प्रचार तथा आत्मनिर्भर भारत के लिए कौशल विकास के ज़रिए स्व रोजगार को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य लिए गुरुकुल निरंतर देश सेवा के मार्ग पर अग्रसर है ।
उन्होंने कहा की वहाँ उपस्थित सभी लोग स्वतः ही इस उद्देश्य पूर्ति के सहयोगी एवं सहभागी बन जाते हैं । समय समय पर गुरुकुल को उन मनीषियों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा है । आयोजन के माध्यम से उन्होंने लोगों से पुनः निवेदन किया की लोग आर्य सनातन धर्म के मूल, उस मूल के उद्भव के लिए संस्कृत की महत्ता, एवं संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए गुरुकुल प्रणाली की आवश्यकता पर मनन करें तथा इस दैविक कार्य में सहभागी व सहयोगी बन कर अपने पूर्व से ही विशिष्ठ जीवन को अति विशिष्ट बनाने के लिए नए संकल्प लेकर उन्हें कार्यान्वित करें ।
निदेशक के स्वागत भाषण के बाद विशिष्ट अतिथि संजय मिश्र के द्वारा गौ पूजन किया गया ।
उसके बाद गुरुकुल के बटुकों द्वारा मंगलाष्टकम् एवं गुरुकुल अष्टकम का गान हुआ । उसके पश्चात सभी मुख्य अतिथियों तथा विशिष्ट अतिथि संजय मिश्र के द्वारा सभा को संबोधित किया गया ।
सभा के अंत में मनोज कुमार ठाकुर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया एवं मुख्य अतिथियों के द्वारा वृक्षारोपण के पश्चात गुरुकुल में भंडारे का आयोजन हुआ ।
इसी के साथ 25 वर्ष पूर्व स्थापित गुरुकुल का रजत जयंती समारोह बटुओं की मीठी कोलाहल के बीच समाप्त हुआ ।