वाराणसी: संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आज त्रिवेंद्रम, केरल के विद्यमान भारतीय ज्ञान परम्परा केंद्र के सह गवेषक तथा अगस्त्यम फाउंडेशन के संस्थापक डा.एस महेश का भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में आगमन हुआ। भारतीय ज्ञान परम्परा केन्द्र में चलायमान व्याख्यान माला में “भारतीययुद्धे कलरी पय्यट्टु कला” विषय पर व्याख्यान का आयोजन हुआ। जिसमे उन्होंने बताया की वेदों में भारतीय शस्त्र युद्ध एवं अन्य हथियारों का विशद वर्णन प्राप्त होता है। अन्य मुख्य बातो में उन्होंने बताया वर्तमान समय में आत्मरक्षण जन सामान्य के लिए बहुत आवश्यक है। कलरी पय्यट्टु ३००० तीन हजार वर्ष से भी पुराना है। कलरी पयट्टु का मतलब होता है लड़ने के लिए जगह (space to fight) । इसको सकल युद्ध कलाओं की जननी (mother of all martial arts) कहा जाता है। इसकी दो परम्पराएं है, एक उत्तर भारतीय एवं द्वितीय दक्षिण भारतीय । दोनो में आध्यात्मिक एवं शारीरिक क्रियाओं में बहुत भिन्नता दिखाई देती है। जैसे उत्तर में वे लोग भगवान परशुराम को एवं दक्षिण में महर्षि अगस्त्य को प्रवर्तक देवता के रूप में पूजते है। प्रारंभ में मुख्य अभ्यासकर्ता के रूम में बौद्ध साधु एवं उनके शिष्य ही रहे । दक्षिण भारत में किया जाने वाला कलरी आत्मरक्षण करने के लिए प्रयुक्त होता है।
90 प्रतिशत लोग गलत तरीके से साँस लेते हैं—
उन्होंने आगे बताए हुए कहा कि मनुष्य को सांस लेना भी सीखना चाहिए । 90 प्रतिशत लोग गलत तरीके से सांस लेते है। उससे आपमें मानसिक एवं शारीरिक नुकसान भी हो सकते है। उसके लिए प्राणायाम करना अति आवश्यक हो जाता है। गौर करने वाली बात तो यह है की यह कला केवल गुरुकुल एवं गुरु शिष्य परम्परा के कारण अखण्डित चली आ रही कला है।
कार्यक्रम में मंच संचालन केंद्र के अनुसंधाता डा. आशीष मणि त्रिपाठी ने किया । तथा स्वागत उद्बोधन केंद्र के प्रधान गवेषक डा. ज्ञानेन्द्र सापकोटा ने किया । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डा. मधुसूदन मिश्र विद्रद्यमान रहे । तथा केंद्र के अनुसंधाता डां. शान्ति मिश्र एवं श्री दवे अल्पेश सहित प्रशिक्षु के साथ अन्य लोग भी विद्यमान रहे।
उत्तर में वे लोग भगवान परशुराम एवं दक्षिण में महर्षि अगस्त्य को प्रवर्तक देवता के रूप में पूजते है-डॉ. एस. महेश
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