वाराणसी। समाज कार्य संकाय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर मंगलवार को एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि मैप्सवी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. रामप्रकाश द्विवेदी ने भारत में मानवाधिकारों को लागू करवाने में महात्मा गांधी की महती की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की वैश्विक स्थापना में फ्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति एवं अमेरिका की स्वतंत्रता से संबंधित क्रांतिकारी दस्तावेजों का महत्वपूर्ण योगदान है। गांधीजी ने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ ही देश से अश्पृश्यता एवं असमानता के निवारण तथा गरीबों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान और सभी के लिए समान आर्थिक, सामाजिक व नागरिक अधिकारों की वकालत की, जो कि भारतीय संविधान के वैचारिक आधार बने।
मुख्य वक्ता एशियन ब्रिज के निदेशक मो. मूसा आजमी ने कहा कि सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित, बाधित एवं नियंत्रित करने के लिए राजसत्ता अथवा समाज के अभिजात्य वर्ग द्वारा किया गया कोई भी प्रयास वैश्विक मानवाधिकारों एवं संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है। प्रो. अनिल कुमार चौधरी ने मानव अधिकारों की ऐतिहासिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि पर विस्तारपूर्वक चर्चा की। प्रो. शैला परवीन ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज करने की जरूरत पर बल दिया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष प्रो. एम.एम. वर्मा ने मानवाधिकार की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित मानवाधिकारों की घोषणा वह पहला स्वीकृत दस्तावेज था, जिसमें मानव को गरिमापूर्ण जीवन एवं उनकी सर्वांगीण उन्नति के अवसरों को उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. भावना वर्मा एवं संचालन डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने किया।