साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के एक दशक बाद, भारत का कृषि क्षेत्र साल 2025 तक पूरी तरह से बदल चुका है। कभी कम उत्पादकता, कीमतों में अनिश्चितता और आयात पर निर्भरता से ग्रस्त व्यवस्था, अब रिकॉर्ड उत्पादन, किसानों की सुनिश्चित आय, वैज्ञानिक नवाचार और दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता से भरपूर है।
दरअसल 2025 को महत्वपूर्ण बनाने के पीछे कोई एक योजना या आंकड़ा नहीं है, बल्कि 11 वर्षों के सुधारों का एक सुसंगत और भविष्य के लिए तैयार कृषि ढांचे में एकीकरण है।
बिखराव से केंद्रित दृष्टिकोण की ओर
2025 में शुरू की गई प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना (पीएमडीडीकेवाई) ने लक्षित और नतीजों पर फोकस करने वाले कृषि सुधार की दिशा में एक अहम कदम उठाया। केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित और जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित यह योजना, 100 कम प्रदर्शन वाले जिलों पर केंद्रित है और इसका मकसद 1.7 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचाना है। इसके लिए प्रतिवर्ष 24,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है, ताकि कम उत्पादकता, जल संकट और ऋण की कमी जैसी मुश्किलों का समाधान किया जा सके।
11 मंत्रालयों की 36 कृषि योजनाओं को एकीकृत करके, पीएमडीडीकेवाई ने खंडित कार्यान्वयन को जिला-स्तरीय समन्वय में तब्दील कर दिया है। एडीपी से प्रेरित यह योजना सिंचाई, भंडारण, प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और संस्थागत ऋण को प्राथमिकता देती है, जो मिशन-आधारित कृषि बदलाव और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का संकेत है।
दलहन: आत्मनिर्भरता की ओर एक रणनीतिक सफलता
वर्ष 2025 में, भारत ने आयात पर निर्भरता कम करने के लिए 11,440 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन की शुरुआत की। इस मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक 350 लाख टन दलहन उत्पादन और 310 लाख हेक्टेयर में दलहन की खेती करना है।
पहली बार, तुअर, उड़द और मसूर उगाने वाले किसानों को बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण बीज वितरण के साथ चार वर्षों के लिए 100% न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खरीद का आश्वासन दिया गया है। करीब 2 करोड़ किसानों को लाभ पहुँचाने वाला यह मिशन, मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करता है, आय को स्थिर करता है और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देता है, जो दलहन में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ी सफलता है।
कृषि-उद्योग संबंध को मज़बूत बनाना: कपास मिशन
केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित पांच वर्षीय कपास मिशन का मकसद, किसानों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी मदद देकर उत्पादकता बढ़ाना है, खासकर अतिरिक्त लंबे रेशे वाली कपास की।
गुणवत्तापूर्ण कपास की लगातार आपूर्ति करके, यह मिशन भारत के वस्त्र क्षेत्र को मजबूत करता है, जहां 80% क्षमता लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) द्वारा संचालित है। साथ ही यह कृषि को औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता का प्रमुख चालक बनाकर, खेतों को वैश्विक बाजारों से जोड़ने के 5एफ दृष्टिकोण को और मज़बूत करता है।
रिकॉर्ड उत्पादन: एक दशक के सुधारों का परिणाम
इन नीतिगत फैसलों का असर साल 2025 में साफ तौर पर दिखाई दिया। कृषि मंत्रालय द्वारा नवंबर 2025 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2024-25 में 357.73 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के साथ अब तक का सबसे उच्च स्तर हासिल किया।
यह 2015-16 की तुलना में 106 मिलियन टन से अधिक की वृद्धि दर्शाता है, जब उत्पादन 251.54 मिलियन टन था, जो पिछले दस वर्षों में दर्ज की गई सबसे बड़ी वृद्धि है।
2025 में घोषित प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:
चावल का उत्पादन रिकॉर्ड 1,501.84 लाख टन
गेहूं का उत्पादन 1,179.45 लाख टन रहा, जो हाल के इतिहास में सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है
दालों का उत्पादन 256.83 लाख टन तक पहुंचा
तिलहन का उत्पादन रिकॉर्ड 429.89 लाख टन तक पहुंचा
2025 की पहली तिमाही में, भारत के कृषि क्षेत्र ने 3.7% की वृद्धि दर्ज की, जिससे यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती कृषि अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया। यह उपलब्धि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हासिल की गई संरचनात्मक स्थिरता को दर्शाती है।
एमएसपी: नीतिगत वादे से आय संरक्षण तक
इस बदलाव का एक ज़रुरी स्तंभ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मजबूत करना रहा है। 2014 से पहले, सीमित खरीद के कारण एमएसपी अक्सर प्रतीकात्मक ही रहता था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, एमएसपी को एक वास्तविक आय संरक्षण व्यवस्था के रूप में संस्थागत रूप दिया गया है।
2025 में, सरकार ने 14 खरीफ फसलों और सभी अनिवार्य रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दी, जिसमें उत्पादन लागत के 1.5 गुना एमएसपी निर्धारित करने के सिद्धांत का सख्ती से पालन किया गया।
दशक भर की तुलना से साफ होता है:
धान की खरीद (2014-15 से 2024-25) 7,608 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई, जबकि इससे पिछले दशक में यह 4,590 लाख मीट्रिक टन थी।
धान किसानों को एमएसपी भुगतान बढ़कर 14.16 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो 2014 से पहले भुगतान की गई राशि से तीन गुना से अधिक है।
14 खरीफ फसलों के लिए कुल एमएसपी भुगतान 16.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जबकि पहले यह 4.75 लाख करोड़ रुपए था।
वर्ष 2025 तक, एमएसपी महज़ एक घोषणा न रहकर, किसानों के लिए एक विश्वसनीय आर्थिक गारंटी बन गया।
विज्ञान और सतत् विकास पर फोकस
2025 में, भारत जीनोम-संपादित चावल की किस्मों को विकसित और जारी करने वाला विश्व का पहला देश बन गया, जो कृषि विज्ञान में एक वैश्विक उपलब्धि है।
डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1, ये दो किस्में काफी अधिक उपज, शीघ्र परिपक्वता और लवणता तथा क्षारीयता के प्रति सहनशीलता प्रदान करती हैं। अनुशंसित क्षेत्र में खेती से 45 लाख टन अतिरिक्त धान का उत्पादन होने, उत्पादन लागत में कमी आने और जलवायु परिवर्तन के प्रति सशक्तिकरण होने की उम्मीद है।
सतत् विकास पर भी समान रूप से जोर दिया गया। महाराष्ट्र द्वारा मात्र 30 दिनों में 45,911 ऑफ-ग्रिड सौर कृषि पंपों की स्थापना, जिसे 2025 में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा मान्यता दी गई, भारत के हरित कृषि की ओर तेज़ी से बढ़ते कदम का प्रतीक है।
राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में कृषि
सार्वजनिक निवेश इस रणनीतिक फोकस को दर्शाता है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के लिए बजटीय आवंटन में भारी वृद्धि हुई है, जो 2013-14 में 21,933.50 करोड़ रुपए से बढ़कर 2025-26 में 1,27,290.16 करोड़ रुपए हो गया है और यह प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में किसानों को दी गई प्राथमिकता को दर्शाता है।
निष्कर्ष: साल 2025 – भारतीय किसानों के लिए आत्मविश्वास का वर्ष
वर्ष 2025 प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि सुधारों के एक दशक की सफलता का प्रतीक है। इसने दिखाया कि कैसे सुसंगत नीति, सुनिश्चित मूल्य, वैज्ञानिक नवाचार और एकीकृत शासन कृषि क्षेत्र को विश्वास से भर सकते हैं।
रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और मजबूत एमएसपी से लेकर पीएमडीडीकेवाई और दलहन में आत्मनिर्भरता जैसी परिवर्तनकारी पहलों की मदद से, वर्ष 2025 में भारतीय कृषि की पुरानी परिभाषा अब बिल्कुल बदल चुकी है। अब यह स्थिरता, आत्मनिर्भरता और आकांक्षा से परिभाषित होती है, जो प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत के दृष्टिकोण के साथ मज़बूती से जुड़ी हुई है।
कृषि क्षेत्र में भारत की कामयाबी का नया मुकाम: साल 2025 का सफर
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