हिन्दी विभाग, काशी विद्यापीठ में प्रेमचंद की जयंती पर ‘प्रेमचंद और उनका साहित्य’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
वाराणसी। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में प्रेमचंद जयंती पर बुधवार को ‘प्रेमचंद और उनका साहित्य’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. विद्या कुमारी चंद्रा ने कहा कि प्रेमचंद समाज के टूटते-बिखरते ताने-बाने को सहेजने की कोशिश अपनी रचनाशीलता में करते हैं। उनके लेखन में सामाजिक न्याय और समरसता की चिंता है। विशिष्ट वक्ता कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रामप्रवेश रजक ने कहा कि प्रेमचंद अपने कथा-पात्रों को अपनी वैचारिकी की आवाज बनाते हैं। ये पात्र स्थानीय होते हैं, लेकिन सामाजिक विमर्श के वैश्विक आयामों को आवाज देते हैं। उक्त वक्तागण ने ऑनलाइन जुड़कर अपने विचार सामने रखे।
स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. राजमुनि ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय लोकमानस के कथाकार हैं। उन्होंने जो कथावस्तु चुनी वह अपनी जानी-पहचानी दुनिया से ही चुनी। बेहद ईमानदार, सादी और समझ में आने वाली जुबान में कथा लिखने वाले वे अनूठे कथाकार रहे हैं। प्रो. अनुकूल चन्द राय ने कहा कि प्रेमचंद द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के मुहावरे से अलग भारतीय देशज सौंदर्यबोध के कथाकार हैं। प्रो. रामाश्रय सिंह ने प्रेमचंद के कथा साहित्य में सामाजिक न्याय और जीव-मात्र के प्रति प्रेम के गांधीवादी चिंतन के तत्त्वों को रेखांकित किया। डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने प्रेमचंद और ताॅलस्ताय व गोर्की जैसे कथाकारों के लेखन में राष्ट्रीय चेतना के संदर्भों को उनकी खेल केन्द्रित कहानियों के जरिए उजागर किया। संचालन डॉ. विजय कुमार रंजन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. अनुराग कुमार, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने भी ऑनलाइन सहभागिता की।