“रिसर्च एथिक्स एंड एकेडेमिक इंटीग्रिटी: लीवरेजिंग डिजिटल टूल्स” विषय पर 18 से 22 अगस्त तक चलने वाले पांच दिवसीय लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ आई.यू.सी.टी.ई. परिसर में हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ मंगलाचरण व मां सरस्वती तथा महामना मदन मोहन मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। यह कार्यक्रम प्रतिभागियों में वैश्विक शैक्षणिक व शोध नैतिक सिद्धांतों की गहन समझ विकसित करने, शैक्षणिक ईमानदारी और उत्तरदायी शोध संस्कृति को बढ़ावा देने, साहित्यिक चोरी रोकने के लिए डिजिटल उपकरणों का प्रयोग करने के लिए आयोजित किया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि प्रो. देविका पी. मदल्ली, निदेशक, सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क केन्द्र, गांधी नगर, गुजरात रहीं। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता आईयूसीटीई के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने की।
प्रथम व उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि प्रो. देविका पी. मदल्ली, निदेशक, सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क केन्द्र, गांधी नगर, गुजरात ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में शोध कार्य की मात्रा (वॉल्यूम) बहुत अधिक है, लेकिन उसकी गुणवत्ता पर अधिक ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है और इन शोध प्रकाशनों का वास्तविक प्रभाव और गुणवत्ता सुनिश्चित होना चाहिए। प्रो. मदल्ली ने कहा ‘रिसर्च इंटीग्रिटी’ केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि यह हमारे विचार प्रक्रिया, शिक्षण प्रक्रिया और संपूर्ण शैक्षणिक समुदाय का हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि नैतिकता और ईमानदारी हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और धरोहर में निहित है और यही हमारी राष्ट्र की समृद्धि का आधार है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में केन्द्र के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने सभी प्रतिभागियों और मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए कहा कि शोध केवल नीति, आचार, व्यवहार और मानदंडों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके मूल में नैतिकता होनी चाहिए। प्रो. सिंह ने कहा कि नैतिकता को केवल सिद्धांत के रूप में नहीं, बल्कि व्यवहार में अपनाने की जरूरत है और जब नैतिकता एक मूल्य के रूप में स्थापित होगी, तभी विद्यार्थी, सहकर्मी तथा संपूर्ण शैक्षणिक व शोध समुदाय इसका स्वाभाविक रूप से अनुसरण करेंगे।प्रो. आशीष श्रीवास्तव, संकाय प्रमुख (अकादमिक व शोध) ने अपने उद्बोधन में दो महत्त्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख करते हुए कार्यक्रम का परिचय दिया। उन्होंने क्यू.एस. रिपोर्ट और कोठारी आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि आज का समय हमें गंभीर चिंतन के लिए प्रेरित करता है। प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि अब केवल बाहरी नियंत्रण पर्याप्त नहीं है, बल्कि हर शोधार्थी और शिक्षक को अपनी स्वयं की ईमानदारी और नैतिकता विकसित करने की आवश्यकता है।
अगले सत्रों में श्री मनोज कुमार के., सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क केन्द्र, गांधी नगर, गुजरात ने ‘इंट्रोडक्शन टू रिसर्च, एथिक्स, एंड एकेडेमिक इंटीग्रिटी’ तथा ‘रिसर्च एथिक्स एंड इंटीग्रिटी: यूजीसी रेगुलेशंस एंड नेशनल/इंटरनेशनल प्लेजरिज्म गाइडलाइन्स’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि इंटीग्रिटी’ केवल ईमानदारी का विषय नहीं है, बल्कि यह शोध एवं शैक्षणिक कार्यों की विश्वसनीयता की आत्मा है। उन्होंने बताया कि यदि शोध में सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता को केंद्र में रखा जाए, तभी उसका वास्तविक प्रभाव समाज और राष्ट्र तक पहुँच सकता है।
इस पांच दिवसीय लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम में बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित 11 राज्यों से 48 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। इस लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम में केन्द्र के प्रो. अजय कुमार सिंह, डॉ. कुशाग्री सिंह, डॉ. दीप्ति गुप्ता, डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह, डॉ. राज सिंह, डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी, डॉ. अनिल कुमार सहित गैर-शैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सह-समन्वयन डॉ. चक्रधर राणा व श्री मनोज कुमार के. ने किया।
सादर धन्यवाद।
“रिसर्च एथिक्स एंड एकेडेमिक इंटीग्रिटी: लीवरेजिंग डिजिटल टूल्स” विषय पर 18 से 22 अगस्त तक चलने वाले पांच दिवसीय लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ आई.यू.सी.टी.ई. परिसर में हुआ
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